कैसे गाँव ही विकास की इकाई तथा सभ्यता है?
बलराम सिंह
अभी जब महामारी का समय आया, तब लोग गांव की तरफ भागने लगे, बहुत सारे लोग गांव की तरफ चले गए, क्योंकि लोगों को गांव एक सुरक्षित जगह लगती है, ऐसा मुझे लगता है। मैं भी एक गांव का रहने वाला हूँ, जोकि अयोध्या के पास है। हमारे गाँव का नाम बड़ा अजीब-सा है। उसका नाम है कुरुओम, इससे ज्यादा वृहद अर्थ एक गांव का नहीं हो सकता। कुरुओम का अर्थ है, सारे संसार को ओममय कीजिये। ओम में सिर्फ देश नहीं आता, धरती नहीं आती, बल्कि पूरा ब्रह्मांड आता है। गांव का नाम इस तरह से लिखा जाता था (कोरौं), उसको मैं दूसरी तरह कौरव या बांस के कोरो से जोड़कर सोचता था। लेकिन बाद में मैने उसका अध्ययन किया, तो इसकी उत्पत्ति कुरुॐ से सहज भाव से प्रतीत हो गई।
मैंने यह अनुभव किया कि सारी सभ्यता गांव की ही सभ्यता है। मैं कई देशों में जा चुका हूँ , अमेरिका में रहता हूँ । यहाँ पर अगर कोई village होता है, उसको बहुत अच्छा मानते हैं। यहाँ पर उसको countryside living कहते हैं । और यहाँ पर गाँव में रहना सम्मानजनक माना जाता है। मैं सोचता हूँ कि, सभ्यता दरअसल गाँव की ही है।
यहाँ पर हमें एक और बात पर ध्यान देना चाहिए जोकि बड़ी रोचक एवं प्रासंगिक है। बात मैं यहाँ यह उठाना चाहता हूँ कि, गांव सभा होती है, नगर सभा नहीं सुना होगा आपने कभी। सभ्यता शब्द की उत्पत्ति सभा से है, अतः सभ्यता तो सभा से आती है, इसलिए वह गांव में ही हो सकती है। नगर में तो नगर निगम होता है। आप कभी निगम्यता नहीं सुनते कि, किसी देश की निगम्यता क्या है? जो निगम हैं, हमारे यहाँ जो शास्त्र हैं, वेद भी उसमें आता है, वह है कि, मान्यता पहले ऊपर से होती है, फिर नीचे उसको सिद्ध किया जाता है। जबकि गांव की सभ्यता जो है, वह गाँव से क्या विचार निकलते हैं, वही सभ्यता का रूप लेते हैं। निगम वह होगा, जो ऊपर से कोई कह रहा है । सभ्यता में नीचे से ऊपर की ओर बात होती है, जहां सभा में बैठकर बात की जाती है। अगर इस दृष्टिकोण से देखें, तो भारत में पूरी तरह से गांव की सभ्यता ही है। सभा के महत्त्व को दर्शाने वाला सुभाषित का एक श्लोक है, जिसे मैंने मिडिल स्कूल में सुना था –
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः|
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा||
अर्थात – वह् माता एक शत्रु के समान है और पिता वैरी के समान है, जो अपने बालकों तथा बालिकाओं को शिक्षित नहीं करते हैं, क्योंकि आगे के जीवन में वे सभा में शोभायमान नहीं होते है हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि सुन्दर हंसों के झुण्ड में एक बगुला| यहाँ पर सभा की संज्ञा हँस हंस से दी गयी है, जिसे उसके दो विशेष गुणों के लिए जाना जाता है, एक है सुन्दरता और दूसरा है विवेक। हँस हंस के विवेक की क्षमता को ऐसी सूक्षम्ता एवं उत्कृष्टता से नापा जाता है, जिसमे जिसमें उसके अन्दर दूध और पानी को पृथक करने की कुशलता हो। इसीलिए उसे ज्ञान की देवी माता सरस्वती का वाहन माना गया है। इस प्रकार सभा एक अत्यंत उच्च कोटि की परम्परा को दर्शाती है। और इस परंपरा की संस्कृति पुरातन काल से ही गाओं गावों में ही विद्यमान है|
भारत में दो बड़े महाकाव्य हुए हैं, महाभारत एवं रामायण, जो भारतीय इतिहास की दो बड़ी घटनाओं पर आधारित हैं। दोनों में आपको गांव की सभ्यता दिखाई पड़ती है। पुरातात्विक स्थल राखीगढ़ी को कुछ लोग नगर सभ्यता बोलते हैं, लेकिन वह अभी भी गाँव ही है। मैं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भाग लेने २०१९ में गया था, और पाया कि वहाँ स्थानीय लोग राखीगढ़ी गांव बोलते हैं, पर न जाने किस मानसिक परतंत्रतावश शोधकर्ता जो कि शहरी मानसिकता के होते हैं, उसे नगर बुलाते हैं। संभवतः वह सिविलाइज़ेशन (सभ्यता), जो कि पाश्चात्य जगत में सिटी (नगर) के प्रादुर्भाव पर आधारित है, की परिकल्पना की आपूर्ति के लिए नगर ही मानने में अपना मान समझते हैं।
इसी तरह गुड़गांव, जो कि गुरु द्रोण का ग्राम था, वहाँ भी गाँव की ही सभ्यता थी।
मैं जब भी भारत आता हूँ, आपने अपने गांव जरूर जाता हूँ। हमारा संयुक्त परिवार है वहाँ। वहाँ रहता हूँ, और मुझे वहाँ की सारी बातें पता हैं। कम-से-कम हफ्ते, दो हफ्ते मैं वहाँ रहता हूँ। मैंने देखा हुआ है कि जब बिजली नहीं आती है, तो लोगों को क्या परेशानी होती है। मैं वहाँ के (उत्तर प्रदेश) के उप मुख्यमंत्री, डॉ. दिनेश शर्मा जी से एक बार मिला, उन्होंने कहा कि गांव में हमने 18 घंटे बिजली कर दी है और शहर में हमने 24 घंटे बिजली कर दी है। मैंने कहा, उसका उल्टा करके देखिये। गांव में 24 घंटे बिजली दीजिए और शहरों में 18 घंटे। फिर आपको पता लगेगा गांव का विकास कैसे हो सकता है। गांव को इस तरह से भारत की आधुनिक शासन-व्यवस्था में हमारे गाँव मूल रूप से उपेक्षित रहा है, रहे हैं। जिसके कारण ही भारत की सभ्यता अपनी जड़ों को नहीं पकड़ पा रही है।
महाभारत के एक प्रसंग को यदि देखें, तो श्री कृष्ण जब एक शांति दूत बनकर हस्तिनापुर गए थे, तो उन्होंने महाराज धृतराष्ट्र से पांच गांव (पांच गांव जो कृष्ण ने पांडवों के लिए मांगे थे – अविस्थल, वरकास्थल, मकांदी, वारणावत और एक नामरहित गाँव) मांगे, पाँच शहर नहीं मांग रहे थे। इसका मतलब गांव से आदान-प्रदान होता था। गांव से ही राज्य होता था। गांव विकास की एक इकाई रही है।
भारत में आज भी साढ़े छह लाख गांव हैं। मैं गांव का रहने वाला रहने वाला हूँ । वहाँ पर मैं भी अपनी तरफ़ से थोड़ा प्रयत्न कर रहा हूँ। मैंने एक हाटनाव ऐप बनवाया है, जिससे गाँव के लोग आत्मनिर्भर हो सकें, और गाँव का स्थानीय विकास हो। गाँव में आज भी सभ्यता बहुत हद तक जीवित है। अभी भी मुझे वहाँ कोई बलराम सिंह नहीं पुकारता, ना ही प्रोफेसर सिंह कहता है। कोई मुझे काका बोलता है, तो कोई मामा, कोई बाबा पुकारता है, और कोई नाना, चाहे वह किसी भी जाति का हो। मतलब यह है कि हमारे रिश्ते होते हैं गांव की सभ्यता में। सारी दुनिया में कम्यूनिज़्म और समाजवाद की जो बात कही जाती है, वह भारत के गावों में व्यवहार में लायी जाती है। इस तरह से हमारे गाँव ही सभ्यता का सही मायने में प्रतिनिधित्व करते हैं।
Prof. Bal Ram Singh, Founder, HaatNow
One Response
सर, आप बहुत अच्छा लिखते है। पढ़ते पढ़ते लगा मानो गांव में ही घूम आई।