262, Village – Korown, Sultanpur, UP- 228121 India.
+919354947355
info@haatnow.com

ग्रामीण-समाज की व्यवस्था में रिश्तों की गहराई की झलक

HaatNow •Produce • Sell • Grow

ग्रामीण-समाज की व्यवस्था में रिश्तों की गहराई की झलक

डा. अपर्णा धीर खण्डेलवाल

शहरवासियों की दृष्टि में गाँव एवम् ग्रामीणवासी सदैव ही सादा जीवन, सरल बोली, साधारण वेशभूषा, तथा सात्त्विक भोजन की छाप छोडे़ हुए है। मन में ऎसी ही छवि बिठाऐ हुए संयोगवश आज से लगभग चार वर्ष पहले मुझे भी एक गाँव में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं चर्चा कर रही हूँ उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले में बसे ’कुरूऊँ गाँव’ की। यूँ तो मैं मुख्य रूप से इस गाँव में स्थित ’कुरूऊँ विद्यालय’ के विद्यार्थियों को ‘सोशल मीडिया का शिक्षा-क्षेत्र में योगदान’’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में शिक्षित करने हेतु गयी थी परन्तु वहाँ जाकर मैनें ग्रामीण-परिवेश को बढ़े करीब से जाना।

गाँव में रहने वाले परिवारों में आपसी सामाञ्जस्य को मैनें वहाँ कुछ दिन बिताकर महसूस किया। रिश्तों की गहराई, अपनापन तथा परस्पर सम्मान की दृष्टि के लिये सदैव ही भारतीय संस्कृति को विश्वपटल पर याद किया जाता है। इन्हीं सबकी झलक से मैं ’कुरूऊँ गाँव’ में रूबरू हुई। परिवार में साथ रहते हुए एक-दूसरे के बच्चों का लालन-पालन अपने बच्चे की तरह करना, यह गाँव में सामान्यत: दृश्यमान है। गाँव के प्रत्येक जन को काका, अम्मा, भाभी, दीदी, भैया, मोसी आदि कहकर सम्बोधित करना गाँव की अपनी विशेषता है जिसका शहरों में अधिक प्रचलन नहीं है। इस तरह सम्बोधन करने से आपसी मनमुटाव कम ही होता है, परस्पर स्नेह की भावना जागृत होती है, अपने परिवार के सदस्यों की तरह ही सारा गाँव नज़र आता है, एवम् लोकाचार से परे किसी प्रकार का विसंगत व्यवहार प्राय: देखने को नहीं मिलता। बड़ों के प्रति श्रद्धापूर्वक पाँव छूने की प्रथा यद्यपि शहरों में लगभग लुप्त होती जा रही है तथापि ग्रामीण-समाज में आज भी इसे अत्यन्त सम्मानीय माना जाता है। शहर आज जितने बड़े होते जा रहे हैं, वहाँ रहने वाले परिवार उतने ही छोटे होते जा रहे हैं परन्तु गाँव में आज भी मुख्यत: संयुक्त परिवार का प्रचलन है। सबकी अच्छाईयों और कमियों को समझकर आपसी सामञ्जस्य और प्रेम के साथ रहना ही ग्रामीण-जीवन की देन है। इन्हीं सब विचारों को समेटे हमारे ग्रामीण-समाज को निश्चित ही भारतीय परम्परा की सुदृढ़ नींव मानना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

डा. अपर्णा धीर खण्डेलवाल, असिस्टेन्ट प्रोफेसर, इन्स्टिटयूट आफ ऎड्वान्स्ट साइन्सीस, डार्टमोथ, यू.एस.ए.

 

3 Responses

  1. Brig JS Rajpurohit, PhD says:

    So well narrated.
    भारतीय संस्कृति की सही मायने में झलक आज हमारे गांवों में मिलती है।
    शेयर करने के लिए अति धन्यवाद।

  2. Dr. Vishvajeet Vidyalankar says:

    शत प्रतिशत सहमति।

  3. Preeti Kaushik says:

    बहुत अच्छा लिखा है मैम आपने।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.