‘Like-Dislike (पसंद-नापसंद)’ के झमेले में संवाद की पराकाष्ठा
-प्रोफ़ेसर बलराम सिंह एवं डॉ. अपर्णा धीर खण्डेलवाल
प्रोफेसर बलराम सिंह एवं डॉ. अपर्णा धीर खण्डेलवाल के परस्पर संवाद की एक झलक। जिसमें किसी विषय को याद दिलाकर डॉ. अपर्णा ने प्रो. सिंह से वार्तालाप प्रारंभ किया, जिसके उत्तर और प्रतिउत्तर में यह चर्चा साधारण से असाधारण का रूप ले गई –
डॉ. अपर्णा – यह आपने पहले भी बताया था… WAVES कांफ्रेंस के बहुत पुराने साल की बात है कि खाने के लिए लोग दौड़ने लगे, उसके बाद आज भी आपने जब एयरलाइन की बात कही तब भी यही बात सामने आ रही थी और अक्सर हम देखते भी हैं कि लोगों का शादी में या कहीं भी बाहर जाकर खाना हमेशा focus बना रहता है
प्रो. सिंह – Good memory!
डॉ. अपर्णा – मुझे आधे से ज़्यादा लोग memory के कारण ही पसंद करते हैं ।
प्रो. सिंह – और बाकी के लोग?
डॉ. अपर्णा – Simple logic है- जिनका मेरी memory से फायदा होता है, वह पसंद करते हैं…जिनका मेरी memory से नुकसान होता है, वह नापसंद करते हैं।
प्रो. सिंह – लेकिन आधे से ज़्यादा लोग पसंद करने का अर्थ है कि बाक़ी के लोग किसी और कारण से पसंद करते हैं।
ना पसंद वालों की बात नहीं,
एकाउंटिंग की बात नहीं, अमाउंटिंग की बात है।
डॉ. अपर्णा – आपने complicated कर दिया sir. मेरा गणित कमज़ोर है।
Tough question है… शायद अब समझ नहीं आएगा, क्या बोलूँ?
प्रो. सिंह – बाक़ी के लोग गणित न आने के कारण पसंद करते होंगे कि ज़्यादा बवाल नहीं करती।
डॉ. अपर्णा – पता नहीं, ऐसा कभी सोचा भी नहीं.
प्रो. सिंह – किसी को पसंद कोई करता है कुछ कारणों से, उदाहरण –
ज्ञान १५%
भुलक्कड़/सहज ५५%
पद १८%
परिवार ५%
सूरत ५%
अन्य २%
ऐसे और भी विषय हो सकते है, जैसे संगीत, नृत्य, पकवान, आभूषण, इत्यादि।
डॉ. अपर्णा – मेरे एक सामान्य से वाक्य पर आपने analytical theory दे दी।
जैसे ‘विज्ञान’ विशेष ज्ञान होता है। ऐसे ही पसंद करने के कारण – कुछ सामान्य कारण है और कुछ विशेष कारण। विशेष कारण व्यक्ति को बाकियों से unique बनाते हैं इसलिए वह ज़्यादा significant role play करते हैं।
प्रो. सिंह – सही!
एक विद्वान् तथा साधारण व्यक्ति में यही भेद होता है। विद्वान् अपने प्रत्येक अवलोकन अथवा प्रेक्षण को किसी रूपरेखा में रखकर उसका दीर्घकालीन विश्लेषण करता है। कभी-कभी रूपरेखा और उसके विश्लेषण की गहराई में गोते लगाने लगता है, और उस गहराई में डूब भी जाता है। ज्ञान चक्षु प्रायः उस डूबने को भी कुछ समझा जाते हैं, जैसे कि प्रबोधन या आत्मबोधन।
डॉ. अपर्णा – सामान्य सी चर्चा दार्शनिक हो गई, यही विद्वान् और साधारण व्यक्ति के परस्पर वार्तालाप के भेद को दर्शाता है।
प्रो. सिंह – हाहा, अब देखिये:
एक साधारण व्यक्ति इस क्षणिक माया से परे…एक सधे मार्ग पर चलकर हर अवलोकन को अनुभव मात्र मान उसी को अपनी संपत्ति मानकर उसके ऊपर रहकर उसे ही गहराई प्रदान कराता रहता है। उसके डूबने का प्रश्न ही नहीं उठता।
प्रो. सिंह के इस वाक्यांश को सुनकर डॉ. अपर्णा ने मौन धारण कर लिया। उसका कारण यह है की साधारण सा वार्तालाप असाधारण पराकाष्ठा की ओर बढ़ चला था और उसने डॉ. अपर्णा को ‘Like-Dislike’ की कड़ी में Facebook और Insta के ज़माने में सच्चाई के दर्शन करा दिए। उन्हें यह अनुभव हुआ कि अक्सर लोग Facebook और Insta पर ‘Like-React-Comment’ करते हैं बिना यह देखे, समझे, या एहसास किए की पोस्ट करने वाला वास्तव में क्या सांझा करना चाहता है।
-प्रोफ़ेसर बलराम सिंह, संस्थापक, HaatNow एवं डॉ. अपर्णा धीर खण्डेलवाल, असिस्टेन्ट प्रोफेसर, इन्स्टिटयूट आफ ऎड्वान्स्ट साइन्सीस, डार्टमोथ, यू.एस.ए.
One Response
बहुत खूब. पढ़ कर हंसी भी आई और सर की बातों की गहराई भी जानी. सर साधारण सी बातों को कैसे दार्शनिक बना देते हैं.