रंग-बिरंगी प्रकृति की चमक
डा. अपर्णा धीर खण्डेलवाल
आया होली का त्योहार……लाया रंगों की फुहार
रंग भी ऐसे………जिसने खिलखिला दिया प्रकृति को
गुलाल तो केवल…..प्रतीक है उन रंगों का,
जिन से……चमक उठी है संपूर्ण धरा
शीत लहर के…..छटते ही
पीली-सुनहरी बन जाती है…..वसुंधरा
अब बादलों में…..छिपा सा नहीं
खुलकर लालिमा…..बिखेरता है सूरज
पाले से…..झुलसे हुए पत्ते
नवीन कोपलो के साथ….अब मुस्कुराने से लगते हैं
पौधों में आई….एक-एक कोपल
जब जरा-सी….अनावृत होती है
उसके रंग की….झलक
उस पौधे को….तिलक करती हुई सी
मानो आने वाली…रंगों-की-बहार के स्वागत की तैयारी करती है…..
जिधर देखो…. रंग ही रंग
लाल, पीला, नीला, बैंगनी, संत्री, गुलाबी, सफेद….
कहीं-कहीं तो सतरंगी, दो रंगी….फूलों के रंग अनेक
ऐसा कौन-सा रंग नहीं….जो इस मौसम में फूलों में ना दिखे…
घर हो या पार्क…..सड़क हो या इमारत
रंग-बिरंगी इक लहर सी…..दिख रही है सब ओर सी
एक नहीं…दो नहीं
दस-दस फूलों के…. ये प्राकृतिक गुच्छे
आभा समेटे….भेंट बनने को तैयार
बचपन से ही….सुना है मां को
यह कहते हुए…..कि वह फूलों को पढ़ाया करती थी…..
लगता है वही गुण
धीरे से….आ गया मुझ में भी
मैं भी….चुपके-चुपके
फूलों से…. बातें करने लगी
अब पौधे….अपना हाल
मुझे बताने लगे….और
उगते सूरज के साथ….आए हुए नए फूल….
मुझसे इतराने लगे…..
रंगों की छटा….बिखेरते हुए
ये फूल….’हम, में से, कौन ज्यादा रंगीन है’?
ऐसा मुझसे पूछने लगे…..
जिन फूलों को……मैं थोड़ा ज्यादा निहार लेती
वह सीधा मुझे…….उनकी फोटो खींचने के लिए इशारा कर देते
फोटो खिचते ही…..वे फूल,
अपने को ‘Star’ समझने लगते….
और ‘Social-Sites’ पर जाने के लिए…..
शोर मचाने लगते
अगर मैं गलती से ना कर देती….किसी फूल को
तो गुस्से से मुंह फुलाकर….झटपट कह देते
“अगली बार घूमने जाएगी, तो तेरे पीछे background नहीं बनाएंगे”
प्राकृतिक रंगों की….यही मोह-माया
ना मुझे…..उन्हें आंखों से ओझल करने देती है…..
और ना ही….. उनसे दूर होने देती है
भगवान की भी…..लीला निराली
जो वसन्त को ’ऋतुराज’
और प्रकृति के….
इन रंगों से बनाया हमारे जीवन को….. जीवन्त
धरती मां का….रंग-बिरंगा
यह रूप ही……होलिकोत्सव के आगमन को…..
दर्शाता है
और…..
सभी प्राणियों के मन को…..उल्लास से भरता है
यही रंग-बिरंगें फूल…. होली-पर्व में….
गुलाल के रूप में…..हमारे हाथों में नजर आते हैं
और हम सबके चेहरे को रंग-बिरंगा बनाते हैं…….
आइए! हम सब भी……बिना किसी मनमुटाव के,
बिना किसी भेदभाव के……प्रकृति के समान
खुद को रंग-बिरंगा बना ले
और एक रंग हो जाए!
– डा. अपर्णा धीर खण्डेलवाल, असिस्टेन्ट प्रोफेसर, इन्स्टिटयूट आफ ऎड्वान्स्ट साइन्सीस, डार्टमोथ, यू.एस.ए.
5 Responses
Wherever you go….no matter what the weather…u bring ur own sunshine ☀️
Bahut badhiya padte padte Aisa feel hua ki jaise Maine bhee isi garden kaa phool hoon very nice aise hee likhte raho or aage badte raho❤️
(Comments received via Wats App)
Beautiful poem
by – Mrs. Veena Wadhwan
Bahut sunder kavita
by – Mrs. Sunita
अतिसुंदर
सुंदर अभिव्यक्ति अपर्णा! फूलों का मानवीयकरण क्या खूब किया है!!