डा. अपर्णा धीर
बचपन से ही होली मेरा favourite festival था।
कुछ दिन पहले से ही बाल्टी भर-भर के गुब्बारे फुलाने
और फिर उन गुब्बारों को किस पर मारे, इस पर मंत्रणा करना…..
जब कोई मिल जाए तो कौन निशाना लगाएगा, इस पर छत्तों से शोर मचाना… और फिर दबे पांव किसी एक का निशाना…. और बाकियों की हंसी-ठ्ठके की गूंज पूरी गली को मानो ‘जीवंत’ बना देती थी।
बड़े हुए तो पता लगा, होली तो खेला ही टोलियों में जाता है…….
एक टोली से दूसरी टोली- कितने रंगे, कितने भीगे, कितने बचे, कितने फंसे….. इस गणना में, क्या पता कितने किस टोली में घटे तो कितने किस टोली में बड़े।

यह तो जब मुंह दुलता है, तब पता चलता है……
‘अरे! यह तो फलाने का लड़का है…इससे तो हमने पूरी उम्र बात न करने की कसम खाई थी, यह कैसे हमारी टोली में आ गया?’
फिर लगता है ‘अरे! अच्छा ही है जो हमारी टोली में आ गया, मस्ती तो……इसी ने हमें खूब कराई थी।’
यही तो ‘पागलपन’ होली की मस्ती कहलाती है,
जो अपने-पराये के भेद को विभिन्न रंगों में रंग कर…. एक नई तस्वीर बनाती है
रूप-रंग, अमीर-गरीब, काला-गोरा सब कुछ छुपाकर, ‘एकत्व’ भाव में लीन होना सिखाती है।
जन-जन को ‘एक’ करें,
पर उससे पहले…. सम्पूर्ण धरा को विभिन्न रंगों से रंगीन बनाती है।

कहते हैं ‘दीपावली-होली’ साल के सबसे बड़े त्यौहार हैं…..
एक में ‘दियों की लड़ी’ तो दूसरे में ‘रंगों की बौछार’ रहती है,
एक में ‘भगवान के आगमन’ की खुशी तो दूसरे में ‘भक्त की भक्ति’ की पराकाष्ठा दिखती है,
‘अमावस-पूर्णमासी’ का यशोगान ‘दर्शपूर्णमास’ के रूप में वेदों से चला और…….पुराणों में यही ‘सूर्य-चंद्र’ की गति ‘श्रीराम-प्रह्लाद’ के चरित्र के बखान की प्रतीकात्मकता बन….. संपूर्ण ब्रह्मांड को विनाश और अराजकता से बचाते हुए, गुढ़ अर्थ को समेटे हुए, परस्पर खुशी का निर्देश देते हुए, विश्वपटल पर ‘भारतीय-संस्कृति’ का परचम लहरा रहे हैं।
तो क्यों ना हम….स्वयं को प्रकृति की गोद में बैठा हुआ जाने?
तो क्यों ना हम….रंग-बिरंगी प्राकृतिक ऊर्जा से ओजस्वी बने?
तो क्यों ना हम….दुखों की कालिमा को सुखों के प्रकाश से जगमगा दें?
तो क्यों ना हम….हमसफर, हमराज़, हमराही बन सृष्टि के बहुरंगों में समा जाएं?

– डा. अपर्णा धीर, असिस्टेन्ट प्रोफेसर, इन्स्टिटयूट आफ ऎड्वान्स्ट साइन्सीस, डार्टमोथ, यू.एस.ए.
Well described about Holi festival, feelings and thoughts of a childhood days. The way accepting the opposite/ troublesome acquaintance into our group gracefully. Very well presented.
Very beautiful pictures & lines ♥️ that brings us close to nature, friends and enemies!!
Bahut sunder rachna. Granth purano ke vykhyan k adbhut sbabdo k milan se bani.
Aparna dear, you are giving surprises one after the other. This poem is also , so good it has obviously surprised me.
God bless you
Keep doing good work
अत्यंत सुंदर शब्दों में सरस भावों की अभिव्यक्ति करता, यह गघ-गीत भूत की स्मृतियों से भविष्य के रंगों को जोड़ता प्रतीत होता है, जिसमें सूत्र का काम कर रही हैं वर्तमान की यथार्थता और हासिल किए बोध की परस्पर गुथी लड़ी।।
डॉ. अपर्णा साधुवाद की पात्र है।
(Comment received via Wats App)
Wao, kitni pyari kavita hai
by – Ms. Upasna Kukreja
वाह, बहुत खूब…
by – Dr. Ashutosh Pareek
This is written with lot of care and the childhood memories are vividly described Aparna ji.
A very well written poem which shows that it’s written directly from the heart.