बेटवा कै लड्डू

बलराम सिंह

इ बात होए क़रीब सन १९९२ कै, जब हमय मासाचूसेट्ट्स यूनिवर्सिटी मॉ पढ़ावत क़रीब दुई साल भा रहा होए। वैसे तौ अमेरिका मॉ रहत हमका लगभग नौ साल होईगा रहा, लकिन विद्यार्थी जीवन कै बात कुछ और होथै, सब पढ़ाई लिखाई के काम मॉ लगा रहाथे,  एतना फ़ुरसत नाहीं मिलत कि कौनव सामाजिक चर्चा होइ सकय। ज़्यादा से ज़्यादा घर परिवार कै बात होय पावत रही।

बॉस्टन के थोड़ी दूर पै एक जगह डार्ट्मथ अहै, जहाँ पै हम परिवार सहित रहत रहन। एक दिन बग़ल के छोटे शहर वेस्टपोर्ट कै निवासी विवेक नायक के घर म दावत रही। अमरीका मॉ ज़्यादातर लोगै भारत के विभिन्न प्रांत से आवाथे, कुछ जनेन का तौ वहि प्रदेश से केहू पहिली बार मिला थे। लोगन का जिज्ञासा रहाथै एक दूसरे कै सभ्यत-संस्कृति या रीति-रिवाज जानै कै।

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यहि प्रकार से कुछ चर्चा महाभारत के बारे मॉ चलति रही। बीआर चोपड़ा वाले महाभारत सीरीयल कै ज़माना रहा। तबकै प्रथा कैसनि रही कि द्रौपदी के पाँच पाँच पति रहे, वग़ैरह वग़ैरह। तब विवेक नायक, जवन कि भारत मा महाराष्ट्र कै रहिन, बतावै लागिन कि कैसे ई प्रथा तौ उत्तर प्रदेश मॉ अबहिनो चलाथै। हमरी ओर देखि के कहै लागिन कि जब वे अमेरिका आवै के पहिले बम्बई मा रहिन, अउर उहाँ ‘भैया लोग’ बहुत रहिन। भैया लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगन बम्बई मा कहा जाथै,  काहेकि अवध क्षेत्र मा भैया शब्द बड़े प्रेम,  आदर और स्नेह से कहि जाथै। गांव देश मा बेरोजगारी के कारण दिल्ली बम्बई जाइके कुछ कमाथे,  और वही मह से बचाइ के कुछ घरहूं भेजाथे। दु दु तिन तिन साल घरहिन नाहीं जाय पउतिन।

विवेक नायक की कहानी अनुसार एक दिन वनके ऑफिस मा काम करै वाला एक भैया लड्डू का पैकेट हाथ मा लइके बड़ी खुशी मा बांटै लाग। तबहिन कौनउ पूछै लाग कि कौनी ख़ुशी मा लड्डू बाँटत हौ भाई?  उ बड़ी उत्साह के साथ कहिस कि बेटवा पैदा भा बॉय। विवेक के अनुसार सबका पता रहा कि वहकर मेहरिया तौ गांवां माँ रहाथै और उ भैया का तौ घरे गए डेढ़ साल से ज्यादा समय होइगा रहा। केउ पुछित कि कैसे पता लागि कि बेटा पैदा भा अहै,  तब उ कहिन गांव से भइया कै चिट्ठी आई रही (वहि समय मा गांव देश म फोन नहीं होत रहा। तब बम्बइया अकिल लगाइन उ सब,  और यहि निष्कर्ष पै पहुंचिन कि इनके बेटवा होय कै मतलब इनकी पत्नी का लड़िका पैदा भा अहै, तौ मतलब वहकर इहै निकला कि सारे भाई मिलके एक पत्नी रखे होइ हैं।  

अइसन भ्रान्ति यहि लिए बनी रही कि भारत कै सांस्कृतिक विभिन्नता के बारे मा अनभिज्ञ अहैं। अवध क्षेत्र अउर खास कइके संयुक्त परिवार कै परम्परा ई होथै कि भाई कै संतान आपन संतान मानी जा थै। परम्परावादी परिवार मा तो अबहिनो अपने पिता जी के बड़े भाई लोगन का बड़े पिता जी,  मझले पिता जी,  इत्यादि ही कहिके बुलावा जाथै। हमरे खुद के घर मा जवन कि संयुक्त परिवार आय,  बड़े पापा, अमेरिका पापा,  दूध पापा (जवन भाई घर के गाय भैंस कै देखभाल कराथें) ही सम्बोधित कइके बुलावा जाथे।

कइसन महान परंपरा वाला देश आय। हुआँ हलवाहे या नौकरौ का काका,  भैया,  और वनके मेहरारू का काकी,  भौजी कहिके बोलावा जाथै! ई समाजवाद लाख माओ या मार्क्स पैदा होइ जायँ तबौ नाही लाय सकतिन। औ यहीं से संस्कार शुरू होथै ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ कै।  अउर एहकै प्रेरणा स्रोत तौ अवध नगरी के राम,  भरत, लक्ष्मण, व शत्रुघ्न ही होइ सकाथें। 

Prof. Bal Ram Singh, Founder, HaatNow